मंगलवार, 11 जून 2013

व्यक्ति और संगठन


संघ शिक्षा वर्ग, 
लाहौर, 1939


जिस उद्देश्य को लेकर संघ चला है उसके लिए आवश्यक है कि हम अपने-आप को नए रूप में ढालें. अपने-अपने क्षेत्र में लौटने के पश्चात विभिन्न प्रकार के दायित्व आपको संभालने पड़ेंगे. काम करते समय यह बात ध्यान रखनी है कि हम संगठन के अभिन्न अंग हैं. इसलिए सबके साथ मिलकर ही काम करना चाहिए. एक आदमी संगठन का सारा काम कर भी नहीं सकता.  यदि हमारे सहयोगियों के मन में हमारे प्रति ज़रा भी बुरा भाव आया तो वह संगठन और राष्ट्र दोनों के लिए घातक सिद्ध होगा. यदि परस्पर पूर्ण सहकार्य न रहा तब ऐसा ही कहना होगा कि हमने संगठन का प्राथमिक पाठ भी नहीं सीखा. हम सम्पूर्ण राष्ट्र को एक करना चाहते हैं परन्तु उसके पहले हमें अपने आप को एक करना होगा.

      यदि कोई स्वयंसेवक ऐसा हो जिसके स्वभाव में कोई दोष या कोई वैगुण्य हो तब उसे साथ लेकर तथा संभालकर काम करना होगा. दूसरे में दोष दिखाई दे तो यह सोचना चाहिए कि दुनिया में निर्दोष कौन है? एक-दूसरे के दोषों को समझ कर अपना काम करें यह आवश्यक है. अपना यह कर्त्तव्य हो जाता है कि अपने सहयोगियों के गुण संसार के सामने रखें. उस से गुण बढते हैं. केवल दोष देखना पितृहत्या के समान पाप है और अपने को दोष-रहित समझना अहंकार. उपदेशक वह हो सकता है जो पूर्णतया निर्दोष हो. जो अपने दोषों को छिपाकर उपदेश देता है उसके समान ढोंगी और मूर्ख कोई नहीं हैं..

     
      बंगाल का एक महापुरुष एक शराबी व पतित मनुष्य के साथ रहता था. फिर भी उस महापुरुष ने संसार को उसके दोष नहीं बताए. महापुरुष के साथ रहते-रहते और उसके प्रेमपूर्ण व्यवहार के कारण कुछ वर्षों के पश्चात उसका शराबीपन बिलकुल समाप्त हो गया. यदि वह महापुरुष उस शराबी व्यक्ति से कहते कि तू पतित है मुझसे दूर रह, तो उसकी शराब कभी नहीं छूटती. परन्तु शुद्ध प्रेम से उसके दोषों को दूर किया जा सका

      संगठन की कार्यवृद्धि करना, उसे अधिक मजबूती प्रदान करना तथा सहयोगियों में स्नेहपूर्ण सहकार्य हमारा उद्देश्य रहना चाहिए. एक-दुसरे के साथ पूर्ण सहयोग के साथ काम करते जाने से यश अवश्य मिलेगा.

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