शनिवार, 18 मई 2013

सैफुद्दीन जिलानी से साक्षात्कार (भाग 1)




मूलतः ईरानी, परन्तु वर्षों से भारत के निवासी व पत्रकार डा. सैफुद्दीन जिलानी से 30 जनवरी १९७१ को कोलकाता में हुए वार्तालाप- (भाग-1)

डा.जिलानी- देश के समक्ष आज जो संकट मुंह बाए खड़े हैं, उन्हें देखते हे हिन्दू-मुस्लिम समस्या का कोई निश्चित हल ढूंढना, क्या आपको आवश्यक प्रतीत नहीं होता?

श्रीगुरुजी- देश का विचार करते समय मैं हिन्दू और मुसलमान-इस रूप में विचार नहीं करता परन्तु इस प्रश्न की ओर लोग इस दृष्टि से देखते हैं | आजकल सभी लोग राजनीतिक दृष्टिकोण से ही विचार करते दिखाई देते हैं | हर कोई राजनीतिक स्थिति का लाभ उठा कर व्यक्तिगत अथवा जातिगत स्वार्थ सिद्ध करने में लिप्त है |इस परिस्थिति पर मात करने में लिप्त है | इस परिस्थिति की ओर देशहित की ही दृष्टि से देखना | उस स्थिति में वर्तमान सभी समस्याएं देखते ही देखते हल हो जायेंगे |
  हाल ही में मैं दिल्ली गया था | उस समय अनेक लोग मुझसे मिलने आये थे | उनमें भारतीय क्रान्ति दल, संगठन कांग्रेस आदि दलों के लोग भी थे | संघ को हमने प्रत्यक्ष राजनीति से अलग रखा है, परन्तु मेरे कुछ पुराने मित्र जनसंघ में होने के कारण कुछ मामलों में मैं मध्यस्थता करूँ इस हेतु से वे मुझे मिलने आये थे | उनसे मैंने एक सामान्य सा प्रश्न पूछा- 'आप लोग हमेशा अपने दल का और आपके दल के हाथ में सत्ता किस तरह आये, इसी का विचार किया करते हैं |परन्तु दलीय निष्ठा व दलीय हितों का विचार करते समय क्या आप सम्पूर्ण देश के हितों का कभी विचार करते हैं? " इस सामान्य से प्रश्न का 'हाँ' में उत्तर देने सामने कोई नहीं आया | समग्र देश के हितों का विचार सचमुच उनके सामने होता, तो वे वैसा साफ़-साफ़ कह सकते थे, किन्तु उन्होंने नहीं कहा | इसका अर्थ स्पष्ट है कि कोई भी दल समग्र देश का विचार नहीं करता | मैं समग्र देश का विचार करता हूँ | इसलिए मैं हिन्दुओं के लिए कार्य करता हूँ, परन्तु कल यदि हिन्दू भी देश के हितों के विरुद्ध जाने लगे तब उनमें मेरी कौन सी रूचि रह जायेगी?
  रही बात मुसलामानों की तो मैं यह समझ सकता हूँ कि अन्य लोगों की तरह उनकी भी न्यायोचित मांगें पूरी की जानी चाहिए, परन्तु जब चाहे, तब विभिन्न सहूलियटन और विशेषाधिकारों की मांगें करते रहना कतई न्यायोचित नहीं कहा जा सकता | मैंने सुना है कि प्रत्येक प्रदेश में एक छोटे पाकिस्तान की मांग उठायी गयी है | जैसा कि प्रकाशित हुआ है, एक मुस्लिम संगठन के अध्यक्ष ने तो लाल किले पर अपना झंडा फहराने की योजना की बात की है | उन महाशय ने अब तक इसका खंडन भी नहीं किया है | ऐसी बातों से समग्र देश का विचार करने वालों का संतप्त होना स्वाभाविक है |
  उर्दू के आग्रह का विचार करें | पचास वर्षों के पूर्व तक विभिन्न प्रान्तों के मुसलमान अपने-अपने प्रान्तों की भाषाएँ बोला करते थे तथा उन्हीं भाषाओं में शिक्षा ग्रहण किया करते थे | उन्हें कभी ऐसा नहीं लगा कि उनके धर्म की कोई अलग भाषा है |
 उर्दू मुसलामानों की धर्म-भाषा नहीं है | मुगलों के समय में एक संकर भाषा के रूप में वह उत्पन्न हुई | इस्लाम के साथ उसका रत्ती भर भी सम्बन्ध नहीं है | पवित्र कुरान अरबी में लिखा है | अतः मुसलामानों की अगर कोई धर्म-भाषा हो, तो वह अरबी ही होगी | ऐसा होते हुए भी आज उर्दू का इतना आग्रह क्यूँ? इसका कारण यह है कि इस भाषा के सहार वे मुसलामानों को एक राजनीतिक शक्ति के रूप में संगठित करना चाहते हैं | यह संभावना ही नहीं तो एक निश्चित तथ्य है कि इस तरह की राजनीतिक शक्ति देशहित के विरुद्ध ही जायेगी |
  कुछ मुसलामान कहते हैं कि उनका राष्ट्र-पुरुष रुस्तम है | सच पूछा जाए तो मुसलामानों का रुस्तम से क्या सम्बन्ध? रुस्तम तो इस्लाम के उदय के पूर्व ही हुआ था | वह कैसे उनका राष्ट्रपुरुष हो सकता है? और फिर, प्रभु रामचंद्र जी क्यों नहीं हो सकते? मैं पूछता हूँ कि आप यह इतिहास स्वीकार क्यों नहीं करते?
  पाकिस्तान ने पाणिनि की 5 हजारवीं जयंती मनाई | इसका कारण यह है कि जो हिस्सा पाकिस्तान के नाम से पहचाना जाता है, वहीँ पाणिनि का जन्म हुआ था | यदि पाकिस्तान के लोग गर्व के साथ यह कह सकते हैं कि पाणिनि उनके पूर्वजों में से एक है, तो फिर भारत के मुसलमान (मैं उन्हें हिन्दू मुसलमान कहता हूँ) पाणिनि, व्यास, वाल्मीकि, राम. कृष्ण आदि को अभिमानपूर्वक अपने महान पूर्वज क्यों नहीं मानते?
 हिन्दुओं में ऐसे अनेक लोग हैं जो राम, कृष्ण आदि को ईश्वर का अवतार नहीं मानते | फिर भी वे उन्हें महापुरुष तो मानते ही हैं, अनुकरणीय मानते हैं | इसलिए मुसलमान भी यदि उन्हें अवतारी पुरुष न मानें, तो कुछ बिगाडनेवाला नहीं , परन्तु क्या उन्हें राष्ट्रपुरुष नहीं माना जाना चाहिए?
 हमारे धर्म और तत्वज्ञान की शिक्षा के अनुसार हिन्दू और मुसलमान सामान ही हैं | ऐसी बात नहीं कि ईश्वरीय सत्य का साक्षात्कार के वाल हिन्दू ही कर सकता है | अपने-अपने धर्म-मत के अनुसार कोई भी साक्षात्कार कर सकता है |
  श्रृंगेरी मैथ के शंकराचार्य का ही उदाहरण लें | यह उदाहरण, वर्तमान शंकराचार्य के गुरु का है | एक अमरीकी व्यक्ति उनके पास आया और उसने प्रार्थना कि की उसे हिन्दू बना लिया जाए | इस पर शंकराचार्य जी ने उस से पूछा-" वह हिन्दू क्यों बनना चाहता है?" उसने उत्तर दिया कि ईसाई धर्म से उसे शान्ति प्राप्त नहीं हुई है | आध्यात्मिक तृष्णा भी अतृप्त है |
 इस पर शंकराचार्य जी ने उस से पूछा-"क्या तुमने सचमुच पहले ईसाई धर्म का प्रामाणिकतापूर्वक पालन किया है? तुम यदि इस निष्कर्ष पर पहुँच चुके होगे कि ईसाई धर्म का पालन करने के बाद भी तुम्हें शान्ति नहीं मिली, तो मेरे पास अवश्य आओ |"
  हमारा दृष्टिकोण इस तरह का है | हमारा धर्म, धर्म परिवर्त न करानेवाला धर्म है |धर्मांतरण तो प्रायः राजनीतिक अथवा अन्य हेतु से कराये जाते हैं || इस तरह का धर्म परिवर्तन हमें स्वीकार नहीं है | हम कहते हैं- 'यह सत्य है | तुम्हें जंचता है तो स्वीकारो, अन्यथा छोड़ दो |'
  दक्षिण की यात्रा के दौरान मदुरै में कुछ लोग मुझसे मिलने के लिए आये | मुस्लिम समस्या पर वो मुझसे चर्चा कर मुसलामानों के विषय में मेरा दृष्टिकोण चाहते थे | मैंने उनसे कहा -" आप लोग मुझसे मिलने आये, मुझे बड़ा आनंद हुआ | हमें यह बात हमेशा ध्यान में रखनी होगी कि हम सब पूर्वज एक ही हैं | हम सब उनके वंशज हैं | आप अपने-अपने धर्मों का प्रामाणिकता से पालन करें, परन्तु राष्ट के मामले में हम सबको एक रहना चाहिए | राष्ट्रहित के लिए बाधक सिद्ध होने वाले अधिकारों और सहूलियतों की मांग बंद होनी चाहिए | हम हिन्दू हैं, इसलिए हम विशेष सहूलियतों या अधिकारों की कभी बात नहीं करते | ऐसी स्थिति में कुछ लोग यदि कहने लगें कि 'हमें अलग होना है', 'हमें अलग प्रदेश चाहिए' तो यह कतई सहन नहीं होअग |"
  ऐसी बात नहीं कि यह प्रश्न केवल हिन्दू और मुसलामानों के बीच ही हो | यह समस्या तो हिन्दुओं के बीच भी है | जैसे हिन्दू-समाज में जैन लोग हैं, तथाकथित अनुसूचित जातियां हैं | अनुसूचित जातियों में कुछ लोगों ने डा. आंबेडकर के अनुयायी बनकर बौद्ध धर्म ग्रहण किया | अब वे कहते हैं -'हम अलग हैं' | अपने देश में अल्पसंख्यकों को कुछ विशेष राजनीतिक अधिकार प्राप्त हैं | इसलिए प्रत्येक गुट स्वयं को अल्पसंख्यक बताने का प्रयास कर रहा है तथा उसके आधार पर कुछ विशेष अधिकार और सहूलियतें मांग रहा है | इस से अपने देश के अनेक टुकड़े हो जाएंगे और सर्वनाश होगा | हम उसी दिशा में अब्ध रहे हैं | कुछ जैन मुनि मुझे मिले| उन्होंने कहा 'हम हिन्दू नहीं हैं| अगली जनगणना में हम स्वयं को जैन के नाम से दर्ज कराएंगे |' मैंने कहा -" आप आत्मघाती सपने देख रहे हैं |" अल्गाव का अर्थ है देश का विभाजन और विभाजन का परिणाम होगा आत्मघात |
 जब लोग प्रत्येक बात का विचार राजनैतिक स्वार्थ की दृष्टि से करने लगते हैं, तब अनेक भीषण समस्याएं उत्पन्न होती हैं, किन्तु इस स्वार्थ को अलग रखते ही अपना देश एकसंघ बन सकता है | फिर हम सम्पूर्ण विश्व की चुनौती का सामना कर सकते हैं |


डा. जिलानी- भौतिकवाद और विशेषतः साम्यवाद से अपने देश के लिए खतरा पैदा हो गया है | हिन्दू और मुसलमान दोनों ही ईश्वर के अस्तित्व पर विश्वास रखते हैं | क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि दोनों मिलकर इस संकट का मुकाबला कर सकते हैं?

श्रीगुरुजी- यही प्रश्न कश्मीर के एक सज्जन ने मुझसे किया था | उनका नाम संभवतः नाजिर अली है | अलीगढ में मेरे एक मित्र अधिवक्ता श्री मिश्रीलाल के निवास स्थान पर वे मिले थे | उन्होंने कहा- 'नास्तिकता और साम्यवाद हम सभी पर अतिक्रमण हेतु प्रयत्नशील है | अतः ईश्वर पर विश्वास रखनेवाले हम सभी को चाहिए कि हम सामूहिक रूप से इस खतरे का मुकाबला करें |
  मैंने कहा- "मैं आपसे सहमत हूँ|" परन्तु कठिनाई यह है कि हम सब ने मानो ईश्वर की प्रतिमा के टुकड़े-टुकड़े कर डाले हैं और हरेक ने एक-एक टुकड़ा उठा लिया है | आप ईश्वर की ओर अलग दृष्टि से देखते हैं , ईसाई अलग दृष्टि से देखते हैं | बौद्ध लोग तो कहते हैं कि ईश्वर तो है ही नहीं; जो कुछ है, वह निर्वाण ही है | जैन लोग कहते हैं कि सब कुछ शून्याकार ही है | हम में से अनेक लोग राम, कृष्ण, शिव आदि के रूप में ईश्वर की उपासना करते हैं | इन सबको आप यह किस तरह कह सकेंगे कि एक ही सर्वमान्य ईश्वर को माना जाए | इसके लिए आपके पास क्या कोई उपाय है?" मेरी यह धारणा थी कि सूफी ईश्वरवादी और विचारशील हा करते हैं, परन्तु उस सूफी सज्जन ने जो उत्तर दिया, उसे सुनकर आप आश्चर्यचकित हो जायेंगे | उन्होंने यह कहा-'तो फिर आप सब लोग इस्लाम क्यों नहीं स्वीकार कर लेते?'
  मैंने कहा-" फिर तो कुछ लोग कहेंगे कि ईसाई क्यों नहीं बन जाते? मेरे धर्म के प्रति मुझे निष्ठा है, इसलिए मैं यदि आपसे कहूं कि आप हिन्दू क्यों नहीं बन जाते, तब? यानी समस्या जैसी की वैसी रह गयी | वह कभी हल नहीं होगी |
  इस पर उन्होंने मुझसे पूछा कि आपकी क्या राय है? मैंने बताया कि सभी अपने-अपने धर्म का पालन करें | एक ऐसा सर्वसारभूत तत्वज्ञान है, जो केवल हिन्दुओं का या केवल मुसलामानों का ही हो, ऐसी बात नहीं है | इस तत्वज्ञान को आप अद्वैत कहें या कुछ और | यह तत्वज्ञान कहता है कि एक एकमेवाद्वितीया शक्ति है, वही सत्य है, वही आनंद है, वही सृजन, रक्षण और संहार करती है | अपनी ईश्वर की कल्पना उसी सत्य का सीमित अंश है | अंतिम सत्य का मूलभूत रूप किसी धर्मविशेष का नहीं अपितु सर्वमान्य है | यही रूप हम सबको एकत्रित कर सकता है | सभी धर्म वस्तुतः ईश्वर की ओर ही उन्मुख करते हैं | अतः यह सत्य आप क्यों स्वीकार नहीं करते कि मुसलमानों, ईसाईयों और हिन्दुओं का परमात्मा एक ही है और हम सब उसके भक्त हैं | एक सूफी के रूप में तो आपको इसे स्वीकार करना चाहिए |
  इसपर उनके पास कोई उत्तर नहीं था | दुर्भाग्य से हमारी बातचीत यहीं समाप्त हो गयी |

(क्रमशः)

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