सोमवार, 20 मई 2013

सम-सामयिक विषयों पर प्रश्नोत्तर

प्रश्न: आप इतिहास की पुस्तकें क्यूँ नहीं लिखते?
उत्तर: अलग पुस्तकें लिखने की क्या आवश्यकता है? बहुतेरी पुस्तकें लिखी गयी हैं | मैं तो पत्र के अतिरिक्त कुछ नहीं लिखता| जिन्हें पुस्तकें लिखना हो, लिखें |

प्रश्न: संघ के घटकों को मंत्रिपद देने के विषय में, पटेल जी ने सूचनाएं दी हैं, ऐसी वार्ता किसी वृत्तपत्र में आयी है| परसों सरदार जी से भेंट के समय आपकी उनसे कोई बातचीत हुई क्या?
उत्तर: इस प्रकार का कोई संभाषण नहीं हुआ | 'मिनिस्ट्री' के सम्बन्ध में हमसे कोई वार्ता नहीं हुई |

प्रश्न: श्रेष्ठ नेतृत्व कहीं दिखाई नहीं देता?
उत्तर: श्रेष्ठ नेतृत्व जनसमाज में से उत्पन्न होता है | यदि जनसमाज को उचित शिक्षण और ज्ञान दिया जाए, तो नवीन नेतृत्व स्वयं उभर आएगा| यह संभव है कि इस नवीन नेतृत्व के घटक प्रतिभाशाली व्यक्तित्व वाले व्यक्ति ना हों, लेकिन यदि वे प्रामाणिक एवं सामान्य बुद्धिक्षमता वाले भी हुए तो देश कल्याण ही होगा |

प्रश्न: क्या आप यह अनुभव करते हैं कि हमारे राजनेता जिन्होंने देश का विभाजन स्वीकार किया, उनमें दूरदर्शिता का अभाव था?
उत्तर: मैं दो उदाहरण देता हूँ | पहला यह कि उनका विश्वास था और वो उपदेश भी देते थे कि मात्र हिन्दू-मुस्लिम एकता से ही स्वराज्य प्राप्त होगा किन्तु स्वराज तब आया जब उनके संबंध अतिशय बिगड़े हुए थे | दूसरा यह कि देश विभाजन के पश्चात पंडित नेहरु ने हवाई जहाज से उन स्थानों को देखा, जहां क्रूरता और अत्याचार का नंगा नाच हो रहा था | ऐसा कहा जाता है कि सब देखकर उन्होंने कहा था- " यदि मालूम होता कि देश विभाजन का परिणाम यह होगा तो मैं कभी भी उसकी स्वीकृति नहीं देता|" अब बताएं मैं कैसे कहूं कि वे दूरदर्शी थे जबकि निकट भविष्य में क्या हो सकता है इसकी कल्पना तक नहीं कर सकते थे?

प्रश्न: विद्यमान राजनेताओं ने देश के लिए त्याग किया है | क्या आप इसे स्वीकार नहीं करेंगे?
उत्तर: परन्तु भूतकाल में किये हुए त्याग की कीमत वसूल करने की वर्तमान प्रवृत्ति का मैं अनुमोदन नहीं कर सकता|

प्रश्न: नेताओं द्वारा दिए गए उपदेश से सामान्यजन को प्रेरणा क्यूँ नहीं मिलती?
उत्तर: क्यूंकि लोग उनके व्यक्तिगत और सार्वजनिक जीवन से भली-भांति परिचित हैं| वे जो कहते हैं उनसे उनका जीवन मेल नहीं खाता | केवल उन्हीं शब्दों का प्रभाव पड़ता है जिनका आधार जीवन के सतकर्म होते हैं |

प्रश्न: आज हर काम के लिए सरकार पर निर्भर रहने की प्रवृत्ति दिखाई देती है| क्या यह उचित है?
उत्तर: जीवन के हर क्षेत्र पर सरकार प्रभुता स्थापित करे यह अत्यंत अनुचित बात है | यह सोचना कि सरकार और राजनीति का जीवन में सबसे महत्वपूर्ण स्थान हैं स्वस्थ विचार नहीं है |

प्रश्न: क्या आप कई राजनीतिक दलों के होने को उचित समझते हैं?
उत्तर: उसमें हानि नहीं है, किन्तु सबका लक्ष्य एक होना चाहिए | सबको राष्ट्र के उत्थान के बारे में ही सोचना चाहिए | किन्तु आज अपने देश में तो सब एक दूसरे से शत्रु जैसा व्यवहार करते हैं |

प्रश्न: हमारे यहाँ के विद्वान् विदेशों में बसना पसंद करते हैं | क्या आप इसे उचित समझते हैं?
उत्तर: यहाँ के श्रेष्ठ बुद्धिमानों से मैं कहना चाहूँगा कि विदेशियों के अधीन काम करने की प्रवृत्ति को तिलांजलि दें और स्वतंत्रतापूर्वक कार्य करें | हमारे देश में संशोधन की सामग्री का आधिक्य है| आविष्कार और खोज के लिए अनन्त अवसर उपलब्ध हैं | मैं तो अनुरोध करूँगा की पूरे विश्व को दिखा दें कि उनमें हर क्षेत्र में कुशलता और योग्यता है |

प्रश्न : जानकारी मिली है कि वैज्ञानिक प्रयोगों के लिए हमारे यहाँ के बंदरों को अमरीका भेजा जा रहा है?
उत्तर: आदमी ने स्वयं को कितना पशु बना लिया है | अपनी कभी ना मिटने वाली भूख की तृप्ति के लिए ईश्वर निर्मित सृष्टि के शोषण को वह अपना अधिकार मानने लगा है | यह कितनी घृणित बात है | यह विश्व को कहाँ ले जा रहा है ? वह जीवन की पवित्रता को नष्ट कर रहा है | आज का दर्शन तो अणु बम का है | वह तो नरभक्षी वृत्ति है | आज आदमी-आदमी का शोषण करके जी रहा है |
ईश्वर निर्मित सम्पूर्ण सृष्टि अति पवित्र है | यदि असावधानी से भी एकाध चींटी को कष्ट हुआ तो मुझे अतीव दुःख होगा |

प्रश्न : अभी हाल के विधानसभा चुनाव के पूर्व प्रधानमन्त्री श्रीमती इंदिरा गांधी तिरुपति दर्शन को गयी थीं | उस विषय में वृत्त्पत्रों में टीका-टिप्पणी हुई थी | क्योंकि बी बी सी को दिए साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि 'उन्हें ईश्वर के बैसाखियों की आवश्यकता नहीं है' पर दूसरी तरफ तिरुपति के दर्शन को जाती हैं | पत्रकारों का कहना है कि यह तो धर्मप्रेमी हिन्दू जनता का वोट प्राप्त करने की चतुर चाल है | इसके आलावा दूसरा कोई हेतु हो ही नहीं सकता |
उत्तर :मैं सोचता हूँ की यह टिप्पणी अनुदार है | मुझे लगता है कि वे राजनीतिक स्वार्थ से नहीं बल्कि भक्ति से प्रेरित हो कर वहाँ गयी थीं | आखिर व्यक्ति के जीवन में ऐसे क्षण आते ही हैं जब वह धन, संपत्ति, सत्ता, लोकप्रियता आदि बातों से ऊपर उठ कर अंतरात्मा में झाँकने का प्रयास करता है | 

प्रश्न : सामाजिक दोषों को दूर करने के लिए उनके प्रति गुस्सा क्यूँ ना जगाया जाए?
उत्तर: जनकोप अल्पजीवी होता है | हम उसे इच्छानुसार नियंत्रित अथवा निर्देशित नहीं कर सकते | शेक्सपियर के नाटक जुलियस सीजर में एंटोनी का प्रसिद्ध कथन हमारे सामने है-" उपद्रव तू चल पड़ा है | जो तेरे में में आये तू वही कर |" शब्दों पर ध्यान दें, उसने यह नहीं कहा कि 'जो मैं चाहता हूँ वो कर|' उसने कहा कि 'जो तू चाहता है तू वो कर|'

प्रश्न: क्या अहिंसा सर्वोच्च सद्गुण नहीं है?
उत्तर: कभी-कभी अहिंसा की रक्षा करने के लिए ही हिंसा आवश्यक बन जाती है |

प्रश्न: व्यक्ति के समाज के साथ क्या सद्गुण होने चाहिए?
उत्तर: सरल शब्दों में कहा जाए तो समाज का सुख वही अपना सुख, उसका दुःख वही अपना दुःख, उसका यश तथा कीर्ति वही अपना यश व कीर्ति, उसका अपमान यानी अपना अपमान, यह अनुभूति होनी चाहिए |

प्रश्न: आदर्श के मार्ग पर अग्रसर होने के लिए व्यक्ति को शक्ति कहाँ से प्राप्त होगी?
उत्तर: आदर्श के प्रति सम्पूर्ण समर्पण भावना से | ईश्वर की अनुभूति प्राप्त करने में लगे दो योगियों की तीव्र तपस्या की कहानी है | नारद उसी रास्ते से भगवान् के धाम जा रहे थे | दोनों योगियों ने नारद जी से जानना चाह कि भगवान् की प्राप्ति के लिए अभी और कितनी तपस्या करनी पड़ेगी | वापस आते वक़्त नारद उन तपस्वियों से पुनः मिले | उन्होंने पहले योगी को बताया कि अभी उसे चार जन्मों तक तपस्या करनी पड़ेगी | नारद जी का उत्तर सुन कर वह निराश हो गया तथा विलाप करने लगा |
नारद जी ने दुसरे योगी को बताया कि उस इमली के वृक्ष में जितनी पत्तियाँ हैं,अभी उतने जन्म तक ईश्वरप्राप्ति के लिए तुम्हें राह देखनी होगी | वह ख़ुशी से नाचने लगा | यह देखकर नारद जी को आश्चर्य हुआ | कारण पूछने पर उसने बताया-" अब यह तो निश्चित हो गया कि ईश्वर प्राप्ति होगी ही | मेरे प्रयत्न निष्फल नहीं जायेंगे | जैसे ही उसने यह कहा, दैवी आकाशवाणी हुई-" अभी से तुम मुक्तात्मा हो |"
इस प्रकार कुछ लोग कठिनाइयों को सुअवसर में बदल सकते हैं | स्वामी विवेकानंद के शब्दों में-" ऐसे लोग रौद्र्पूजा करते हैं और संकटमय जीवन से प्रेम करते हैं| " सभी प्रकार के प्रलोभनों और विपत्तियों की आंधी से अविचलित रहते हुए, आग्रही वृत्ति से विजयी हो कर आगे बढ़ते ही रहते हैं|

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें