बुधवार, 15 मई 2013

एक नीति कथा







कुछ लोग चाटुकारिताप्रिय होते हैं. यदि कोई उन पर स्तुति की वर्षा करता है तो वे उल्लासित होते हैं और फूल्कर कुप्पा हो जाते हैं तथा उनसे जो कुछ करवाना हो, वह सब कुछ करने को तैयार हो जाते हैं. लोग अनेक बातों का प्रतिकार कर सकते हैं, परन्तु खुशामद का नहीं. भयंकरतम विष पचाना अपेक्षाकृत आसान है किन्तु स्तुति और सम्मान पचाना सरल नहीं. एक कथा है; भगवान् शंकर सबके संरक्षण के लिए गरल पी गए और उस से अप्रभावित रहे. पर वही शंकर भस्मासुर की स्तुति के शिकार बने और स्वयं के लिए आपत्तियों को बुला लाये. स्तुति मनुष्य को फूले हुए फुटबॉल की तरह फुला देती है, जिसको की सदैव एक ओर से दूसरी ओर के लिए ठोकर मारी जाती है. ऐसे में कोई भी आकर अतिशयोक्तिपूर्ण शब्दों में उसकी प्रशंसा कर अपनी स्वार्थसिद्धि कर सकता है. और, तब कहीं यह व्यक्ति भ्रममुक्त हो पाता है.

    इस पाठ को सिखलाने वाली एक पुरानी कथा है. एक बार एक कौआ अपनी चोंच में मांस का टुकडा लिए एक पेड़ पर बैठा था. कौए को देखकर एक सियार उस पेड़ के नीचे आकर बैठ गया, और कौए की ओर देखकर स्तुति करने लगा,"क्या सुन्दर रंग तुमने पाया है मेरे मित्र. यह वही श्याम रंग है जो श्री कृष्ण का था. और पिछली बार मैंने तुम्हें गाते सुना, ओह गन्धर्वों ने भी तुमसे ईर्ष्या की होती. मैं पुन: तुम्हारा स्वर्गिक गान का सुनने का अवसर पाकर कितना भाग्यवान होता." कौआ उस स्तुति से फूल गया उर डोलने लगा. सोचा "चलो इस मित्र को संतुष्ट कर दें" और जैसे ही उसने अपनी चोंच खोली, मांस का टुकड़ा नीचे आ गिरा. सियार ने तत्परता से उसे झपट लिया और यह कहते हुए अपने रास्ते हो लिया-" अब मुझे तुम्हारे संगीत से कोई प्रेम नहीं है"

   आज हमारे देश के अनेक बड़े लोगों में खुशामद के सम्बन्ध में यह कमजोरी है. और, विश्व में ऐसे अनेक धूर्त लोग हैं जो स्तुति के इस सूक्ष्म साधन का उपयोग कर लेते हैं. यदि वे कहते हैं की " आप कितने शांतिप्रिय, अहिंसावादी और उदार हैं! आप अतिश्रेष्ठ अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिनाम व्यक्तियों में से एक हैं." अआदी-आदि तो इस स्तुति से हमारे नेताओं के पैर ज़मीं से ऊपर उठ जाते हैं और वे प्रशंसक जो कुछ चाहते हैं, उसे देना स्वीकार कर लेते हैं, चाहे वह नाहर का पानी हो, धन हो, अन्य सामग्री हो अथवा हमारे सैनिक हों जो कि संसार भर में होने वाले संघर्षों में युद्ध-बलि के रूप में प्रयुक्त किये जाते हैं.

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