सोमवार, 20 मई 2013

डा. सैफुद्दीन जिलानी से साक्षात्कार- (भाग-2)


मूलतः ईरानी, परन्तु वर्षों से भारत के निवासी व पत्रकार डा. सैफुद्दीन जिलानी से 30 जनवरी १९७१ को कोलकाता में हुए वार्तालाप- (भाग-2)

डा. जिलानी- हिन्दू और मुसलामानों के बीच आपसी सद्भावना बहुत है, फिर भी समय-समय पर छोटे झगडे होते ही रहते हैं | इन झगड़ों को मिटाने के लिए आपकी राय में क्या किया जाए?

श्रीगुरुजी - आप अपने लेखों में इन झगड़ों का एक कारण हमेशा बताते हैं |वह कारण है गाय | दुर्भाग्य से अपने लोग और राजनीतिक नेता भी इस कारण का विचार नहीं करते | परिणामतः देश के बहुसंख्यकों में कटुता की भावना उत्पन्न होती है | मेरी समझ में नहीं आता कि गोहत्या के विषय में इतना आग्रह क्यों है? इसके लिए कोई कारण नहीं दीखता | इस्लाम धर्म गोहत्या का आदेश नहीं देता | पुराने ज़माने में हिन्दुओं को अपमानित करने का वह एक तरीका रहा होगा | अब वह क्यों चलना चाहिए?

  इसी प्रकार की अनेक छोटो-बड़ी बातें हैं | आपस के पर्वों त्योहारों में हम क्यों नहीं सम्मिलित न हों? होलिकोत्सव समाज के सभी स्तरों के लोगों को अत्यंत उल्लासयुक्त वातावरण में एकत्रित करने वाला त्यौहार है | मान लीजिये कि इस त्यौहार के समय किसी मुस्लिम बंधु पर कोई रंग उड़ा देता है, तो इतने मात्र से क्या कुरान की आज्ञाओं का उल्लंघन हो जाता है?इन बातों की ओर एक सामाजिक व्यवहार के रूप में देखा जाना चाहिए | मैं आप पर रंग छिद्कुं, आप मुझ पर छिडकें | हमारे लोग तो कितने ही वर्षों से मुहर्रम के सभी कार्यक्रमों में सभी सम्मिलित होते आ रहे हैं | इतना ही नहीं तो अजमेर के उर्स जैसे कितने ही उत्सवों में मुसलामानों के साथ हमारेलोग भी उत्साहपूर्वक सम्मिलित होते रहते हैं |किन्तु सत्यनारायण की पूजा में यदि कुछ मुसलमान बंधुओं को हम आमंत्रित करें तो क्या होगा? आपको विदित होगा कि द्रमुक के लोग अपने मंत्रिमंडल के एक मुस्लिम मंत्री को रामेश्वर के मंदिर ले गए | मंदिर के अधिकारियों, पुजारियों और अन्य लोगों ने उक्त मंत्री का यथोचित मान सम्मान किया, किन्तु उसे जब मंदिर का प्रसाद दिया गया, तो उसने उसे फ़ेंक दिया | प्रसाद ग्रहण करने मात्र से तो वह धर्मभ्रष्ट होने वाला नहीं था |इसी तरह की छोट-छोटी बातें हैं | अतः पारस्परिक आदर की भावना उत्पन्न की जानी चाहिए |
 हमें जो वृत्ति अभिप्रेत है, वह सहिष्णुता मात्र नहीं है | अन्य लोग जो कुछ करते हैं, उसे सहन करना सहिष्णुता है | परन्तु अन्य लोग जो कुछ करते हों, उसके प्रति आदर-भाव रखना सहिष्णुता से ऊंची बात है | इसी वृत्ति, इसी भावना को प्राधान्य दिया जाना चाहिए |हमें सबके विषय में आदर है | यही मार्ग मानवता के लिए हितकारक है | हमारा वाद सहिष्णुतावाद नहीं अपितु सम्मानवाद है | दूसरों के मत का आदर करना हम सीखें तो सहिष्णुता स्वयमेव चली आएगी |

डा. जिलानी- हिन्दू और मुसलमानों के बीच सामंजस्य स्थापित करने के कार्य के लिए आगे आने की योग्यता किस्में है-राजनीतिक नेता में, शिक्षाशास्त्री में या धार्मिक नेता में?

श्रीगुरुजी- इस मामले में राजनीतिज्ञ का क्रम तो सबसे अंत में लगता है | धार्मिक नेताओं के विषय में भी यही कहना होगा | आज अपने देश में दोनों ही जातियों के धार्मिक नेता अत्यंत संकुचित मनोवृत्ति के हैं | इस काम के लिए नितांत अलग प्रकार के लोगों की आवश्यकता है | जो लोग धार्मिक तो हों,किन्तु राजनीतिक नेतागिरी ना करते हों और जिनके मन में समग्र राष्ट्र का विचार सदैव जागृत रहता हो | धर्म के अधिष्ठान के बिना कुछ संभव नहीं |धार्मिकता होनी ही चाहिए | रामकृष्ण मिशन को ही लें | यह आश्रम व्यापक और सर्वसमावेशक धर्मप्रचार का कार्य कर रहा है | अतः आज तो इसी दृष्टिकोण और वृत्ति की आवश्यकता है कि ईश्वरोपासनाविषयक विभिन्न श्रद्धाओं को नष्ट ना कर हम उनका आदर करें, उन्हें टिकाये रखें और वृद्धिंगत होने दें |
  राजनीतिक नेताओं के जो खेल चलते हैं, उन्ही से भेदभाव उत्तरोत्तर बढ़ता जाता है | जातियों, पंथों पर तो वे जोर देते हैं, साथ ही भाषा, हिन्दू-मुस्लिम आदि भेद भी वे पैदा करते हैं | परिणामतः अपनी समस्याएं अधिकाधिक जटिल होती जा रही हैं | जाति-सम्बन्धी समस्या के मामले में तो राजनीतिक नेता ही वास्तविक खलनायक हैं | दुर्भाग्य से राजनीतिक नेता ही आज जनता का नेता बन बैठा है | जबकि चाहिए तो यह था कि सच्चे विद्वान, सुशील और ईश्वर के परमभक्त महापुरुष जनता के नेता बनते | परन्तु इस दृष्टि से आज उनका कोई स्थान ही नहीं है | इसके विपरीत नेतृत्व आज राजनीतिक नेताओं के हाथ में हैं |जिनके हाथों में नेतृत्व है, वे राजनीतिक पशु बन गए हैं | अतः हमें लोगों को जागृत करना चाहिए |
 दो दिन पूर्व ही मैंने प्रयाग में कहा कि कि लोगों को राजनीतिक नेताओं के पीछे नहीं जाना चाहिए, अपितु ऐसे सत्पुरुषों का अनुकरण करें, जो परमात्मा के चरणों में लीं है, जिनमें चारित्र्य है और जिनकी दृष्टि विशाल है |

डा. जिलानी- क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि जातीय सामंजस्य निर्माण का उत्तरदायित्व बहुसंख्यक समाज के रूप में हिन्दुओं पर है?

श्रीगुरुजी- हाँ ! मुझे यही लगता है, परन्तु कुछ कठिनाइयों का विचार किया जाना चाहिए |अप्नेगन सम्पूर्ण दोष हिन्दुओं पर लादकर मुसलामानों को दोषमुक्त कर देते हैं | इसके कारण जातीय उपद्रव करने के लिए अल्पसंख्यक समाज, यानी मुस्लिमों को सब प्रकार का प्रोत्साहन मिलता है | इसलिए हमारा कहना है कि इस मामले में दोनों को अपनी जिम्मेदारियों का पालन करना चाहिए |

डा. जिलानी- आपकी राय में सामंजस्य की दिशा में तत्काल कौन से कदम उठाये जाने चाहिए?

श्रीगुरुजी- हाँ मुझे यही लगता है, परन्तु कुछ कहना बहुत ही कठिन है, फिर भी सोचा जा सकता है | व्यापक पैमाने पर धर्म की याठार्थ शिक्षा देना एक उपाय हो सकता है | राजनीतिक नेताओं द्वारा समर्थित आज जैसी धर्महीन शिक्षा नहीं, अपितु सच्चे अर्थों में धर्म-शिक्षा लोगों को इस्लाम व हिन्दू धर्म का ज्ञान कराये |सभी धर्म मनुष्य को महान, पवित्र और मंगलमय बनने की शिक्षा देते हैं | यह लोगों को सिखाया जाए |
 दूसरा उपाय यह हो सकता है कि जैसा हमारा इतिहास है, वैसा ही हम पढ़ाएं | आज जो इतिहास पढाया जाता है, वह विकृत रूप में पढाया जाता है | मुस्लिमों ने इस देश पर आक्रमण किया हो तो वह हम स्पष्ट रूप से बताएं, परन्तु साथ ही यह भी बताएं की वह आक्रमण भूतकालीन है और विदेशियों ने किया है | मुसलमान यह कहें कि वे इस देश के मुसलमान हैं और ये आक्रमण उनकी विरासत नहीं है | परन्तु जो सही है, उसे पढ़ाने के स्थान पर जो असत्य है, विकृत है, यही आज पढाया जाता है | सत्य बहुत दिनों तक दबाकर नहीं रखा जा सकता | अंततः वह सामने आता है और तब उस से लोगों में दुर्भावना निर्माण होती है | इसलिए मैं कहता हूँ कि इतिहास जैसा है, वैसा ही पढाया जाए | अफज़ल खान को शिवाजी ने मारा है, तो वैसा ही बताओ | कहो कि एक विदेशी आक्रामक और एक राष्ट्रीय नेता के तनावपूर्ण संबंधों के कारण यह घटना हुई | यह भी बताएं कि हम सब एक ही राष्ट्र हैं, इसलिए हमारी परंपरा अफज़ल खान की नहीं है | परन्तु यह कहने की हिम्मत कोई नहीं करता | इतिहास के विकृतीकरण को मैं अनेक बार धिक्कार चूका हूँ और आज भी उसे धिक्कारता हूँ |

डा. जिलानी-भारतीयकरण पर बहुत चर्चा हुई, भ्रम भी बहुत निर्माण हुए | क्या आप बता सकेंगे कि ये  भ्रम कैसे दूर किये जा सकेंगे?

श्रीगुरुजी- भारतीयकरण की घोषणा जनसंघ द्वारा की गयी है, किन्तु इस मामले में संभ्रम क्यों होना चाहिए? भारतीयकरण का अर्थ सबको हिन्दू बनाना तो है नहीं |
 हम सभी को यह सत्य समझ लेना चाहिए कि हम इसी भूमि के पुत्र हैं|| अतः इस विषय में अपनी निष्ठा अविचल रहना अनिवार्य है | हम सब एक ही मानवसमूह के अंग हैं, हम सबके पूर्वज एक ही हैं, इसलिए हम सबकी आकांक्षाएं भी एक सामान हैं- इसे समझना ही सही अर्थों में भारतीयकरण है |
  भारतीयकरण का यह अर्थ नहीं कि कोई अपनी पूजा पाद्धाती त्याग दे | यह बात हमने कभी नहीं कही और कभी कहेंगे भी नहीं | हमारी तो यह मान्यता है कि उपासना की एक ही पद्धति सम्पूर्ण मानव जाति के लिए सुविधाजनक नहीं |


डा. जिलानी- आपकी बात सही है | बिलकुल सौ फ़ीसदी सही है | अतः इस स्पष्टीकरण के लिए मैं आपका बहुत ही कृतज्ञ हूँ |

श्रीगुरुजी- फिर भी मुझे संदेह है कि सब बातें मैं स्पष्ट कर सका हूँ या नहीं |

डा. जिलानी- कोई बात नहीं | आपने अपनी ओर से बहुत अच्छी तरह से स्पष्ट किया है | कोई भी विचारशील और भला आदमी आपसे असहमत नहीं होगा | क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि अपने देश का जातीय बेसुरापन समाप्त करने का उपाय ढूँढने में आपको सहयोग दे सकें, ऐसे मुस्लिम नेताओं की और आपकी बैठक आयोजित करने का अब समय आ गया है? ऐसे नेताओं से भेंट करना क्या आप पसंद करेंगे?

श्रीगुरुजी- केवल पसंद ही नहीं करूँगा, ऐसी भेंट का मैं स्वागत करूँगा |

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