आजकल पाश्चात्य जीवनपद्धति का अनुसरण करने की प्रवृत्ति होने के कारण यह धारणा बलवती होती जा रही है कि सार्वजनिक कार्यकर्ताओं के व्यक्तिगत जीवन की ओर नहीं देखना चाहिए; परन्तु यह प्रवृत्ति अपनी परंपरा के अनुकूल नहीं | व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में भेद मानने की हमारी परंपरा नहीं है | कथनी और करनी में एकरूपता को ही हमारी परंपरा में वन्दनीय माना है | जो स्वयं चरित्रभ्रष्ट हैं, उनके उपदेश का समाज पर किंचित भी परिणाम नहीं हो सकता |
परम पूजनीय श्री माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर जी जिन्हें हम 'श्रीगुरुजी' के नाम से जानते हैं, हमारे देश में हुए महान विचारकों में से एक थे. ये राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दुसरे सरसंघचालक थे. ये हमारे देश का दुर्भाग्य है कि संकुचित राजनीति की वजह से श्रीगुरुजी के विचारों को एक 'धर्म विशेष' से जोड़ कर गलत सन्दर्भों में प्रचारित किया गया. यह ब्लॉग पूर्णतः श्रीगुरुजी को समर्पित है. आज की युवा पीढ़ी को श्रीगुरूजी के विचारों से प्रेरणा अवश्य मिलेगी.
सोमवार, 13 मई 2013
अंतर्बाह्यशुचिता का आदर्श
आजकल पाश्चात्य जीवनपद्धति का अनुसरण करने की प्रवृत्ति होने के कारण यह धारणा बलवती होती जा रही है कि सार्वजनिक कार्यकर्ताओं के व्यक्तिगत जीवन की ओर नहीं देखना चाहिए; परन्तु यह प्रवृत्ति अपनी परंपरा के अनुकूल नहीं | व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में भेद मानने की हमारी परंपरा नहीं है | कथनी और करनी में एकरूपता को ही हमारी परंपरा में वन्दनीय माना है | जो स्वयं चरित्रभ्रष्ट हैं, उनके उपदेश का समाज पर किंचित भी परिणाम नहीं हो सकता |
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