सोमवार, 13 मई 2013

अंतर्बाह्यशुचिता का आदर्श




आजकल पाश्चात्य जीवनपद्धति का अनुसरण करने की प्रवृत्ति होने के कारण यह धारणा बलवती होती जा रही है कि सार्वजनिक कार्यकर्ताओं के व्यक्तिगत जीवन की ओर नहीं देखना चाहिए; परन्तु यह प्रवृत्ति अपनी परंपरा के अनुकूल नहीं | व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में भेद मानने की हमारी परंपरा नहीं है | कथनी और करनी में एकरूपता को ही हमारी परंपरा में वन्दनीय माना है | जो स्वयं चरित्रभ्रष्ट हैं, उनके उपदेश का समाज पर किंचित भी परिणाम नहीं हो सकता |

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